आस्था, संस्कृति और अध्यात्म का महोत्सव
Mahakumbh मेला भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा का एक अनूठा आयोजन है। यह विश्व का सबसे बडा संास्कृति और धार्मिक मेला है। यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव है, जहां करोड़ों श्रद्धालु एकत्र होकर अपने पापों का प्रायश्चित करने और मोक्ष प्राप्ति के लिए पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, संतो के प्रवचन सुनते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के साथ ही अपने जीवन को सुन्दर बनाने के सूत्र ले जाते हैं। महाकुंभ न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है।
Mahakumbh kab lagega
महाकुंभ क्या है?
कुंभ का अर्थ होता है घडा इसलिए आप सबने कुंभ राशि के चिन्ह में घडा भी देखा होगा। भारत के संस्कृति में कुंभ एक मेला ही नहीं एक महापर्व के रूप में देखा जाता है। कुंभ सभी पर्वो में सर्वोपरि है। कुंभ की यह परंपरा भारत में वैदिक युग से ही चली आ रही है जब ऋषि और मुनि स्नान के बाद नदी के किनारे जमा होकर धार्मिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक रहस्यों पर विचार-विमर्श किया करते थे। यह आस्था, संस्कृति और अध्यात्म का महापर्व है।
महाकुंभ का आयोजन क्यो किया जाता हैं?
समुद्र मंथन
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवताओं और राक्षसो ने मिलकर जब समुद्र मंथन कर उसके द्वारा प्राप्त होने वाले सभी रत्नों को आपस में बाटने का निर्णय किया, पर जब अमृत निकला तो उसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच होड लग गई। तब असुरों से अमृत बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वह पात्र अपने गरूड को दे दिया। असुरों न जब गरूड से वह पात्र छीनने का प्रयास किया तो उस पात्र में से अमृत की कुछ बूंदे चार (4) स्थानों पर गिर गई। वह स्थान पृथ्वी के प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक थे।
मान्याताओं के अनुसार देव और राक्षस के बीच अमृत को लेकर 12 दिनों तक 12 स्थानों में चला, उन 12 स्थानों में अमृत की बूंदे छलकि जिनेमें से चार स्थान मृत्युलोक में हैं, बाकि के आठ अन्य लोकों में हैं। 12 वर्ष के मान का देवताओं का 12 दिन होता है। इसलिए प्रत्येक 12 वर्ष में महाकुंभ का आयोजन हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज में त्रिवेणी संगम (जहां गंगा, यमुना और सरस्वती) में किया जाता है।
महाकुंभ का आयोजन स्थल:-
हरिद्वारः- जब बृहस्पति ग्रह, कुंभ राशि में हो और इस दौरान सूर्य देव मेष राशि में आते है, तो महाकुंभ का आयोजन हरिद्वार में गंगा के किनारे किया जाता हैं।
प्रयागराजः- जब बृहस्पति ग्रह, वृषभ राशि में हों और इस दौरान सूर्य देव मकर राशि में आते हैं, तो महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना और सरस्वती ) के किनारे किया जाता हैं।
नासिकः- जब बृहस्पति और सूर्य दोनो सिंह राशि में हों तब महाकुंभ का आयोजन नासिक में गोदावरी के किनारे किया जाता हैं।
उज्जैनः- जब देवगुरू बृहस्पति सिंह राशि में हों और सूर्य मेष राशि में हों तो महाकुंभ का आयोजन उज्जैन में शिप्रा के किनारे किया जाता हैं।
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निष्कर्ष:-
महाकुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय समाज, संस्कृति और अध्यात्म का जीता-जागता उदाहरण है। यह भारत की अद्भुत परंपरा, आस्था और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। महाकुंभ केवल एक मेला नहीं, बल्कि एक ऐसी यात्रा है, जो आत्मा को शुद्धि, समाज को प्रेरणा और भारत को गर्व का अहसास कराती है।
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