Hindu MantraHindu MantraHindu Mantra
Notification Show More
Font ResizerAa
  • Blog
  • Dharmik stories
  • Mantra
  • Stories
  • Temple
Reading: Dhan Ka Sadupyog
Share
Hindu MantraHindu Mantra
Font ResizerAa
Search
Follow US
Copyright © 2014-2023 Ruby Theme Ltd. All Rights Reserved.
Hindu Mantra > Blog > Stories > Dhan Ka Sadupyog
Stories

Dhan Ka Sadupyog

mukku By mukku Last updated: May 2, 2024 6 Min Read
SHARE

एक गांव में धर्मदास नामक एक व्यक्ति रहता था।बातें तो बड़ी ही अच्छी- अच्छी करता था पर था एकदम कंजूस ,
चाय की बात तो छोड़ों वह किसी को पानी तक के लिए नहीं पूछता था।
साधु-संतों और भिखारियों को देखकर तो उसके प्राण ही सूख जाते थे कि कहीं कोई कुछ मांग न बैठे।
एक दिन उसके दरवाजे पर एक महात्मा आये और धर्मदास से सिर्फ एक रोटी मांगी।
पहले तो धर्मदास ने महात्मा को कुछ भी देने से मना कर दिया,लेकिन तब वह वहीं खड़ा रहा तो उसे आधी रोटी देने लगा। आधी रोटी देखकर महात्मा ने कहा कि अब तो मैं आधी रोटी नहीं पेट भरकर खाना खाऊंगा।
इस पर धर्मदास ने कहा कि अब वह कुछ नहीं देगा।महात्मा रातभर चुपचाप भूखा-प्यासा धर्मदास के दरवाजे पर खड़ा रहा।

सुबह जब धर्मदास ने महात्मा को अपने दरवाजे पर खड़ा देखा तो सोचा कि अगर मैंने इसे भरपेट खाना नहीं खिलाया और यह भूख-प्यास से यहीं पर मर गया तो मेरी बदनामी होगी।
बिना कारण साधु की हत्या का दोष लगेगा।
धर्मदास ने महात्मा से कहा कि बाबा तुम भी क्या याद करोगे, आओ पेट भरकर खाना खा लो।
महात्मा भी कोई ऐसा वैसा नहीं था।धर्मदास की बात सुनकर महात्मा ने कहा कि अब मुझे खाना नहीं खाना, मुझे तो एक कुआं खुदवा दो।

लो अब कुआं बीच में कहां से आ गया’ धर्मदास ने साधु महाराज से कहा।
धर्मदास ने कुआं खुदवाने से साफ मना कर दिया।

साधु महाराज अगले दिन फिर रातभर चुपचाप भूखा- प्यासा धर्मदास के दरवाजे पर खड़ा रहा।
अगले दिन सुबह भी जब धर्मदास ने साधु महात्मा को भूखा-प्यासा अपने दरवाजे पर ही खड़ा पाया तो सोचा कि अगर मैने कुआं नहीं खुदवाया तो यह महात्मा इस बार जरूर भूखा-प्यास मर जायेगा और मेरी बदनामी होगी।
धर्मदास ने काफी सोच- विचार किया और महात्मा से कहा कि साधु बाबा मैं तुम्हारे लिए एक कुआं खुदवा देता हूं और इससे आगे अब कुछ मत बोलना।

नहीं, एक नहीं अब तो दो कुएं खुदवाने पड़ेंगे’,
महात्मा की फरमाइशें बढ़ती ही जा रही थीं।
धर्मदास कंजूस जरूर था बेवकूफ नहीं। उसने सोचा कि अगर मैंने दो कुएं खुदवाने से मनाकर दिया तो यह चार कुएं खुदवाने की बात करने लगेगा।
इसलिए धर्मदास ने चुपचाप दो कुएं खुदवाने में ही अपनी भलाई समझी।

’कुएं खुदकर तैयार हुए तो उनमें पानी भरने लगा। जब कुओं में पानी भर गया तो महात्मा ने धर्मदास से कहा – दो कुओं में से एक कुआं मैं तुम्हें देता हूं और एक अपने पास रख लेता हूं।
मैं कुछ दिनों के लिए कहीं जा रहा हूं, लेकिन ध्यान रहे मेरे कुएं में से तुम्हें एक बूंद पानी भी नहीं निकालना है।
साथ ही अपने कुएं में से सब गांव वालों को रोज पानी निकालने देना है।
मैं वापस आकर अपने कुएं से पानी पीकर प्यास बुझाऊंगा।’धर्मदास ने महात्मा वाले कुएं के मुंह पर एक मजबूत ढक्कन लगवा दिया।

सब गांव वाले रोज धर्मदास वाले कुएं से पानी भरने लगे।लोग खूब पानी निकालते पर कुएं में पानी कम न होता।शुध्द-शीतल जल पाकर गांव वाले निहाल हो गये थे और महात्मा जी का गुणगान करते न थकते थे।
एक वर्ष के बाद महात्मा पुनः उस गांव में आये और धर्मदास से बोले कि उसका कुआं खोल दिया जाये।
धर्मदास ने कुएं का ढक्कन हटवा दिया।

लोग लोग यह देखकर हैरान रह गये कि कुएं में एक बूंद भी पानी नहीं था।
महात्मा ने कहा, ‘कुएं से कितना भी पानी क्यों न निकाला जाए वह कभी खत्म नहीं होता अपितु बढ़ता जाता है।
कुएं का पानी न निकालने पर कुआं सूख जाता है इसका स्पष्ट प्रमाण तुम्हारे सामने है और यदि किसी कारण से कुएं का पानी न निकालने पर पानी नहीं भी सुखेगा तो वह सड़ अवश्य जायेगा और किसी काम में नहीं आयेगा।’

महात्मा ने आगे कहा, ‘कुएं के पानी की तरह ही धन-दौलत की भी तीन गतियां होती हैं।
उपयोग, नाश अथवा दुरुपयोग।
धन-दौलत का जितना इस्तेमाल करोगे वह उतना ही बढ़ती जायेगी।
धन-दौलत का इस्तेमाल न करने पर कुएं के पानी की वह धन-दौलत निरर्थक पड़ी रहेगी। उसका उपयोग संभव नहीं रहेगा या अन्य कोई उसका दुरुपयोग कर सकता है।

अतः अर्जित धन-दौलत का समय रहते सदुपयोग करना अनिवार्य है।
ज्ञान की भी यही स्थिति होती है।वह भी बांटने से बढ़ता जाता है।
अतः धन-दौलत की तरह ही दूसरों की सहायता करने के साथ साथ ज्ञान भी बांटते चलो।
हमारा समाज जितना अधिक ज्ञानवान, जितना अधिक शिक्षित व सुसंस्कृत होगा उतनी ही देश में सुख- शांति और समृध्दि आयेगी।
फिर ज्ञान बांटने वाले अथवा शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने वाले का भी कुएं के जल की तरह ही कुछ नहीं घटता अपितु बढ़ता ही है’,

धर्मदास ने कहा, ‘हां, गुरुजी आप भी बिल्कुल ठीक कह रहे हो।
मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है।’

इस घटना से धर्मदास को सही ज्ञान और सही दिशा मिल गयी और उसने अपने धन का सदुपयोग किया।

TAGGED:dharmikstoryhindihindistorymoralstorystorytelling
Share This Article
Facebook Twitter Copy Link Print
Previous Article Kannappa- The Story of Shiv Devotee
Next Article Kedarnath Temple Story
FacebookLike
TwitterFollow
TelegramFollow
Most Popular
Narmada River
May 30, 2025
Mahakumbh 2025
Mahakumbh 2025
February 21, 2025
देवरहा बाबा
Devraha Baba
November 5, 2024
51 Shakti Peeth
51 Shakti Peeth
October 28, 2024
DIWALI
Diwali 2024
October 7, 2024

Featured Posts

  • 51 Shakti Peeth
    51 Shakti Peeth
    by mukku
    October 28, 2024
  • hindumanta .net
    Ashwathama – A story From Mahabharat
    by mukku
    March 19, 2024
  • Baba Baidyanath Temple
    by mukku
    March 31, 2024
  • sanskrit counting.
    Counting in Sanskrit
    by mukku
    August 2, 2024

Explore Categories

  • Blog2
  • Dharmik stories34
  • Mantra5
  • Stories13

You Might Also Like

StoriesDharmik stories

Narmada River

9 Min Read
Mahakumbh 2025
BlogDharmik storiesStories

Mahakumbh 2025

5 Min Read
देवरहा बाबा
Dharmik storiesStories

Devraha Baba

10 Min Read
DIWALI
Dharmik storiesStories

Diwali 2024

7 Min Read

Always Stay Up to Date

Subscribe to our what's app and telegram channel to get our newest articles instantly!

Hindu Mantra
  • About Us
  • Contact
  • Disclaimer
  • Home
  • Privacy Policy

We offers a rich collection of powerful mantras for spiritual growth,  and inner peace. Discover sacred chants and their meanings to elevate your daily practice and connect with the divine.

Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?