Kamakhya Temple की उत्पत्ति समय की धुंध में छिपी हुई है, जिससे इसके सटीक ऐतिहासिक आरंभ का पता लगाना मुश्किल है। हालांकि, पुरातात्त्विक प्रमाण बताते हैं कि इस मंदिर की जड़ें बहुत प्राचीन हैं, और वर्तमान संरचना 17वीं शताब्दी की है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार और विस्तार कई शासकों द्वारा किया गया, जिनमें कोच और अहोम राजाओं का विशेष योगदान रहा, जिन्होंने असम के सांस्कृतिक और धार्मिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Kamakhya Temple का वास्तुकला
असम की विशिष्ट शैली में बना कामाख्या मंदिर एक अद्भुत वास्तुकला और आध्यात्मिक प्रतीकवाद का नमूना है। इस मंदिर की मुख्य संरचना में एक गोलार्द्धीय गुम्बद है, जिसमें देवी-देवताओं और पौराणिक दृश्यों को दर्शाते हुए खूबसूरत नक्काशीदार पैनल हैं। मंदिर के शिखर और शीर्ष पर स्थित कलश पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक हैं, जो इसकी शोभा बढ़ाते हैं।
मंदिर परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिर भी हैं, जो विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं और इस स्थान के आध्यात्मिक वातावरण को और समृद्ध बनाते हैं। नीलाचल पहाड़ी का प्राकृतिक परिवेश मंदिर की पवित्रता को और बढ़ाता है, जिससे यह स्थान ध्यान और पूजा के लिए एक शांतिपूर्ण माहौल प्रदान करता है।
Kamakhya Temple पौराणिक कथा – सती की कहानी
कामाख्या मंदिर की पौराणिक कथा सती की कहानी से गहराई से जुड़ी हुई है। सती भगवान शिव की पहली पत्नी थीं। कथा के अनुसार, राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने जानबूझकर सती के पति शिव को आमंत्रित नहीं किया।
अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाने के कारण, सती ने अपने तेज से आत्मदाह कर लिया।
भगवान शिव ने अपने दुःख और क्रोध में सती के जले हुए शरीर को उठाया और विनाशकारी तांडव नृत्य में लीन हो गए। शिव के क्रोध को शांत करने और प्रलय को रोकने के लिए, भगवान विष्णु ने हस्तक्षेप किया और अपने दिव्य सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागो में विभाजित कर दिया। ये भाग, जिन्हें शक्तिपीठ कहा जाता है।
यह शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के अलग अलग हिस्सो में गिरा हैं और हर स्थान एक पवित्र स्थल बन गया।
कामाख्या मंदिर को वह स्थान माना जाता है जहाँ माता सती की योनि गिरी थी, जिससे यह हिंदू परंपरा में सबसे महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
Kamakhya Temple का रहस्य
कामाख्या मंदिर की एक खास बात यह है कि यहाँ कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक योनिकुंड है, जो हमेशा फूलों से ढका रहता है। इस कुंड की विशेषता है कि इससे हमेशा पानी निकलता रहता है।
हर साल 22 जून से 25 जून तक मंदिर के दरवाजे बंद रहते हैं और इन दिनों के दौरान भक्तों का प्रवेश वर्जित होता है। इस समय ब्रह्मपुत्र नदी का पानी भी लाल हो जाता है। मान्यता है कि इन दिनों में माता सती का मासिक धर्म होता है, इसलिए किसी भी पुरुष को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं होती। 26 जून को मंदिर के द्वार फिर से खोल दिए जाते हैं और भक्त माता कामाख्या के दर्शन कर सकते हैं।
परंपराओं के अनुसार, माता सती के मासिक धर्म के इन तीन दिनों में मंदिर में एक सफेद कपड़ा रखा जाता है। तीन दिनों के बाद जब इसे हटाया जाता है, तो यह कपड़ा पूरी तरह से लाल हो जाता है। इस कपड़े को फिर भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
Kamakhya Temple – Ambubachi Mela
अंबुबाची महोत्सव देवी की प्रजनन क्षमता का उत्सव है। यह मान्यता है कि इस समय माता कामाख्या, जो भगवान शिव की युवा पत्नी हैं, रजस्वला होती हैं। इस दौरान मंदिर तीन दिनों के लिए बंद रहता है। इसके बाद देवी का स्नान कराया जाता है और मंदिर की सामान्य गतिविधियाँ फिर से शुरू होती हैं।
मान्यता के अनुसार, मानसून के दौरान जब यह त्योहार मनाया जाता है, तब वर्षा के कारण माता पृथ्वी अपनी मिट्टी को पोषित करती है और अपनी प्रजनन क्षमता के चरम पर होती है। यह उत्सव देवी की प्रजनन क्षमता और पृथ्वी की उर्वरता का प्रतीक है, और इसी विश्वास के साथ श्रद्धालु इसे मनाते हैं।
Kamakhya Temple का समय
सामान्य दिनों में, मंदिर सुबह 8:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक और फिर दोपहर 2:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक खुला रहता है। हालांकि, विशेष दिनों पर, जैसे दुर्गा पूजा के दौरान, समय में कुछ बदलाव होते हैं:
5:30 बजे: पीठस्थान का स्नान
6:00 बजे: नित्य पूजा
8:00 बजे: भक्तों के लिए मंदिर के द्वार खुलते हैं
1:00 बजे: देवी को भोजन अर्पित करने के लिए मंदिर के द्वार बंद होते हैं
कामाख्या मंदिर के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
कामाख्या मंदिर कहाँ स्थित है?/ Where is Kamakhya Temple located?
कामाख्या मंदिर असम राज्य के गुवाहाटी शहर में नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है।
कामाख्या मंदिर का महत्व क्या है?
कामाख्या मंदिर शक्ति पीठों में से एक है और इसे माँ कामाख्या देवी को समर्पित किया गया है। यह मंदिर तांत्रिक साधना और पूजा के लिए भी प्रसिद्ध है।
कामाख्या मंदिर के दर्शन का समय क्या है?
कामाख्या मंदिर सुबह 5:30 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक और फिर शाम 2:30 बजे से रात 9:00 बजे तक खुला रहता है।
कामाख्या मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय कब है?
कामाख्या मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय नवरात्रि और अंबुवाची मेले के दौरान होता है, जो जून के महीने में मनाया जाता है।
कामाख्या मंदिर तक कैसे पहुँचा जा सकता है?/ How to reach Kamakhya Temple?
गुवाहाटी हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन से कामाख्या मंदिर आसानी से टैक्सी या ऑटो रिक्शा के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।
क्या मंदिर में विशेष पूजा की व्यवस्था है?
हाँ, कामाख्या मंदिर में विभिन्न प्रकार की विशेष पूजाओं की व्यवस्था है। इसके लिए आपको मंदिर कार्यालय में संपर्क करना होगा।
कामाख्या मंदिर में प्रवेश के लिए क्या कोई ड्रेस कोड है?
हाँ, मंदिर में प्रवेश के लिए सादे और पारंपरिक वस्त्र पहनना आवश्यक है। छोटे कपड़े, शॉर्ट्स या मिनी स्कर्ट की अनुमति नहीं है।
क्या मंदिर में फोटोग्राफी की अनुमति है?
मंदिर परिसर में फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है, विशेष रूप से गर्भगृह में।
कामाख्या मंदिर के आसपास और कौन-कौन से पर्यटन स्थल हैं?
कामाख्या मंदिर के आसपास उमानंद मंदिर, नवग्रह मंदिर, और पाण्डु पांडव गुफा जैसे पर्यटन स्थल भी देखे जा सकते हैं।
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