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Kedarnath Temple Story

mukku By mukku Last updated: May 3, 2024 8 Min Read
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Kedarnath Temple / केदारनाथ का ऐतिहासिक वर्णन 8वीं सदी में महान ऋषि, संत और दार्शनिक आदि शंकराचार्य से किया जा सकता है। वे अपने जन्म स्थल से केदारनाथ तक यात्रा करते हुए इस स्थान पर कई मठ, मंदिर और यात्राएँ स्थापित कर दीं। उन्होंने देवभूमि उत्तराखंड में हिन्दू जनसाधारण के बीच हिंदू धर्म की भावना को पुनर्जीवित करने का उद्देश्य रखकर चार धाम यात्रा स्थापित की थी। माना जाता है कि उन्होंने केदारनाथ धाम में अपना ज्यादा समय व्यतीत किया और इसी स्थान में उन्होनें अपनी अंतिम सांस ली।

Contents
Kedarnath/केदारनाथ कि 400 साल बर्फ के नीचे कि कहानी :-केदारनाथ में भगवान शिव कैसे विराजमान हुअे :-केदारनाथ उद्घाटन एवं समापन समारोह :-केदारनाथ मंदिर के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)केदारनाथ मंदिर कहाँ स्थित है?/ Where is Kedarnath Temple Located?केदारनाथ मंदिर की स्थापना कब हुई थी?केदारनाथ मंदिर का महत्व क्या है?केदारनाथ मंदिर की यात्रा का सर्वाेत्तम समय कब है?केदारनाथ मंदिर कैसे पहुँचा जा सकता है?/ How to reach Kedarnath Temple?केदारनाथ यात्रा के दौरान कहाँ ठहर सकते हैं?केदारनाथ यात्रा के दौरान क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?केदारनाथ मंदिर के पास अन्य प्रमुख स्थान कौन से हैं?केदारनाथ मंदिर से जुड़ी मुख्य धार्मिक कथाएँ कौन सी हैं?

Kedarnath/केदारनाथ कि 400 साल बर्फ के नीचे कि कहानी :-

केदारनाथ मंदिर की निर्माण वर्ष कब हुआ यह अभी भी एक रहस्य है, वैज्ञानिकों ने हमेशा इस मंदिर में छिपे रहस्यों को खोजने में रुचि रखी है। देहरादून से एक अनुसंधान समूह ने मंदिर की दीवारों पर कुछ अनुसंधान किया जिसका मकसद था कि मंदिर की वास्तविक आयु के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त हो। परिणाम पूरी तरह से अप्रत्याशित थे! प्राथमिक केदारनाथ मंदिर को पिछले चार सौ वर्षों से भारी बर्फ की एक प्रमुख परत द्वारा छिपा गया था। यह नतीजा मंदिर की बाहरी दीवारों पर कई परीक्षणों को चलाकर अभिप्रायित किया गया था, जो पीली रेखाएं प्रदर्शित करती थीं। और अधिक अनुसंधान ने दिखाया कि ये रेखाएं एक छोटे बर्फ की युगल के नतीजे हैं जहां पूरा रुद्रप्रयाग क्षेत्र एक विशालकार बर्फ की परत से ढका था।

यह आश्चर्यजनक है कि इस बार्फीले युग के बाद भी मंदिर पूरी तरह से ठीक रहा और किसी भी दरार को नहीं देखा गया। स्पष्ट है कि जो भी इस मंदिर संरचना के लिए जिम्मेदार था, उसने इस क्षेत्र में कठिन जलवायु शर्तों को ध्यान में रखा था और मंदिर को इस तरह से तैयार किया था कि यह सबसे कठिन जलवायु में भी बने रहे।

केदारनाथ में भगवान शिव कैसे विराजमान हुअे :-

महाभारत-युद्ध में विजयी होने के पश्चात पांडव भ्रात हत्या व अन्य हत्याओं से मुक्ति के लिए भगवान शिव शंकर का साक्षात आशीर्वाद चाहते थे, पर शिव महादेव उनसे रुष्ट थे। पांडव उनके दर्शन पाने के लिए काशी (वाराणसी) गए पर उन्हें पा नहीं सके। तब वे शिव शंकर को ढूंढते हुए हिमालय पहुंचे पर अपने निश्चित स्थान से शिव अंतर्ध्यान होकर केदार में आ बसे क्योंकि वे पांडवों को दर्शन देना नहीं चाहते थे।

पांडव भी आस्था, श्रद्धा व लगन पूर्वक ढूंढते हुए केदार भी पहुंच गए। तब शिव ने बैल का रूप धारण किया और अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को शंका हो गई। तब भीमसेन ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पर्वतों पर अपने पैर फैला लिए। सभी गोवंश उनके पैरों के नीचे से निकल गए पर शंकर रूपी बैल नीचे से नहीं निकले, तब भीम बलपूर्वक झपटे और बैल को कसकर पकड़ लिया, तब बैल भूमि में समाने लगा। तभी भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ (महादेव शरीर) का हिस्सा पकड़ लिया और नहीं छोड़ा।

तब भगवान शंकर ने पांडवों की श्रद्धा, भक्ति, आस्था से प्रसन्न होकर उन्हें प्रकटरू तत्काल दर्शन दिया और उन्हें पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शिव शंकर रूपी बैल की पीठ (महादेव) की आकृति का पिंड श्री केदारनाथ के नाम से पूजित हुआ।

केदारनाथ उद्घाटन एवं समापन समारोह :-

नवंबर माह से शुरू होने वाली शीत ऋतु के दौरान केदारनाथ में भारी बर्फबारी होती है और सभी मार्ग बंद हो जाते हैं। उस समय भगवान शिव की पवित्र मूर्ति को गढ़वाल (केदारखंड) से उखीमठ में स्थानांतरित कर दिया जाता है , और मई के पहले सप्ताह में केदारनाथ में पुनः स्थापित किया जाता है। इस समय, मंदिर के दरवाजे तीर्थयात्रियों के लिए खोल दिए जाते हैं, जो पवित्र तीर्थयात्रा के लिए भारत के सभी हिस्सों से इकट्ठा होते हैं। यह मंदिर कार्तिक के सप्ताह में भाई दूज (अक्टूबर-नवंबर) के दिन बंद होता है और हर साल अक्षय तृतीया (अप्रैल-मई) के बाद फिर से खुलता है। इसके बंद होने के दौरान मंदिर बर्फ में डूबा रहता है और पूजा उखीमठ में की जाती है।

केदारनाथ मंदिर के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

केदारनाथ मंदिर कहाँ स्थित है?/ Where is Kedarnath Temple Located?

केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है।

केदारनाथ मंदिर की स्थापना कब हुई थी?

केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था और इसे आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में पुनर्निर्मित किया था।

केदारनाथ मंदिर का महत्व क्या है?

केदारनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यह हिंदू धर्म के चार धामों में से एक है। इसे पंच केदार में सबसे प्रमुख माना जाता है।

केदारनाथ मंदिर की यात्रा का सर्वाेत्तम समय कब है?

केदारनाथ मंदिर की यात्रा का सर्वाेत्तम समय मई से अक्टूबर के बीच होता है। इस दौरान मौसम सुहावना रहता है और मंदिर खुला रहता है।

केदारनाथ मंदिर कैसे पहुँचा जा सकता है?/ How to reach Kedarnath Temple?

केदारनाथ मंदिर तक पहुँचने के लिए आपको पहले गौरीकुंड पहुँचना होता है। गौरीकुंड से केदारनाथ तक 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होती है। अब हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है।

केदारनाथ यात्रा के दौरान कहाँ ठहर सकते हैं?

केदारनाथ और गौरीकुंड में विभिन्न धर्मशालाएँ, गेस्ट हाउस और होटल्स उपलब्ध हैं। यात्रा के दौरान अग्रिम बुकिंग करना बेहतर होता है।

केदारनाथ यात्रा के दौरान क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?

ऊँचाई पर होने के कारण यहाँ का मौसम अचानक बदल सकता है, इसलिए गर्म कपड़े साथ रखें। स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त लोगों को पहले चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए।

केदारनाथ मंदिर के पास अन्य प्रमुख स्थान कौन से हैं?

केदारनाथ मंदिर के पास भीमबली, गौरीकुंड, वासुकी ताल और तुंगनाथ जैसे अन्य प्रमुख धार्मिक और प्राकृतिक स्थल हैं।

केदारनाथ मंदिर से जुड़ी मुख्य धार्मिक कथाएँ कौन सी हैं?

केदारनाथ मंदिर से जुड़ी प्रमुख कथा है कि भगवान शिव ने यहाँ पांडवों को दर्शन दिए थे। इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव ने केदार के रूप में स्वयं को स्थापित किया था।

यदि आपके पास और कोई प्रश्न हैं, तो कृपया पूछें। जय केदारनाथ!

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

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