Khatu Shyam Mandir

By Sanatan

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khatu shyam mandir

Khatu Shyam Mandir – राजस्थान के सीकर ज़िले में स्थित खाटू श्याम जी का मंदिर भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। भक्तों की अटूट आस्था और श्रद्धा के कारण यह स्थान हर समय भक्ति और उत्साह से भरा रहता है। यहाँ भगवान खाटू श्याम जी की पूजा होती है, जिन्हें कलयुग के देवता और श्री कृष्ण के अवतार के रूप में माना जाता है और इन्हे हारे का सहारा भी कहा जाता है।

कौन है, खाटू श्याम जी

Barbarik offering his head to Shri Krishna

खाटू श्याम जी का वास्तवीक नाम बर्बरीक था। उनके पिता का नाम घटोत्कच और माता का नाम कामकंटक्टा (मोरवी) था। महाभारत के युद्ध के समय बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण को अपना शीश दान कर दिया था।
इस निस्वार्थ शीशदान से भगवान श्रीकृष्ण खुश होकर उन्हे आशीर्वाद दिया इस कारण ही बर्बरीक आज खाटू श्याम जी के नाम से प्रसिद्ध हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार

खाटू श्याम मंदिर की कहानी महाभारत काल से जुड़ी है। बर्बरीक, जो भीम के पोते और घटोत्कच के पुत्र थे, उन्होने भगवान शिव की तपस्या करके तीन अभेद्य बाण प्राप्त किया था।
महाभारत युद्ध के समय बर्बरीक ने अपनी माता अहिलावती से युद्ध में जाने की इच्छा जताई। माँ ने अनुमति दी तो बर्बरीक ने उनसे पूछा की “मैं युद्ध में किसका साथ दूँ?”

माँ ने विचार किया कि कौरवों के पास विशाल सेना है, उनके साथ भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कृपाचार्य और कर्ण जैसे महारथी भी हैं। ऐसे में पांडवों की हार निश्चित थी। इसलिए माँ ने कहा “बेटा! तुम उसी का साथ देना जो युद्ध में हार रहा हो।”

बर्बरीक ने माँ को वचन दिया और युद्धभूमि की ओर चल पड़े।

श्रीकृष्ण जानते थे कि यदि बर्बरीक युद्ध में उतरते हैं तो स्थिति बिगड़ जाएगी। क्योंकि हारते हुए को जीत दिलाने की प्रतिज्ञा के कारण, यदि कौरव हारने लगते तो बर्बरीक उनका साथ देते और पांडव हार जाते।

इसलिए श्रीकृष्ण ब्राह्मण का वेश धारण कर उनके पास पहुँचे और उनसे शीश दान माँग लिया। बर्बरीक आश्चर्य में पड़ गए कि कोई ब्राह्मण सिर क्यों माँगेगा। उन्होंने असली रूप दिखाने का आग्रह किया। तब भगवान ने अपना विराट रूप प्रकट किया।

यह देखकर बर्बरीक ने बिना संकोच तलवार से अपना सिर भगवान के चरणों में अर्पित कर दिया। श्रीकृष्ण ने उनका शीश अपने हाथों में उठाया और अमृत से सींचकर अमर बना दिया।

युद्ध का साक्षी बना बर्बरीक

बर्बरीक ने भगवान से युद्ध देखने की इच्छा जताई। तब श्रीकृष्ण ने उनका शीश युद्धभूमि के पास सबसे ऊँची पहाड़ी पर स्थापित कर दिया, जहाँ से वे पूरा युद्ध देख सके।

कैसे बने “हारे का सहारा”

युद्ध के बाद पांडव आपस में विजय का श्रेय लेने लगे। जब वे निर्णय के लिए श्रीकृष्ण के पास पहुँचे तो उन्होंने कहा दृ “मैं तो व्यस्त था, मैंने किसी का पराक्रम नहीं देखा। चलो, बर्बरीक से पूछते हैं।”

सब लोग बर्बरीक के पास पहुँचे। तब श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा कि पांडवों का पराक्रम कैसा रहा?
बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया दृ “भगवन! युद्ध में तो केवल आपका सुदर्शन चक्र चलता दिखा और माँ दुर्गा रक्त पान करती दिखाई दीं। मुझे इन पांडवों का पराक्रम कहीं दिखाई ही नहीं दिया।”

यह सुनकर पांडव चुप हो गए। तब श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक को “श्याम” नाम दिया और आशीर्वाद दिया कि कलयुग में वे “हारे का सहारा” कहलाएँगे।

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