Somnath Temple History

By Sanatan

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Somnath मंदिर हिंदुओं के लिए एक पावन स्थल है क्योंकि मिथकों के अनुसार इसे शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है, कहते हैं कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव सोमराज ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में मिलता है।

Somnath मंदिर भारत में पश्चिम गुजरात के सौराष्ट्र में प्रभास पाटन में – पौराणिक सरस्वती, हिरण्य और कपिला नदियों – त्रिवेणी संगम – के संगम पर स्थित है।

गुजरात के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली हैं।
सोमनाथ मंदिर गुजरात, भारत में स्थित है और यह भारतीय इतिहास का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इसकी कहानी में अंतरराष्ट्रीय और धार्मिक महत्व है। सोमनाथ मंदिर हिंदू धर्म के एक प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह भगवान शिव के उपास्य मंदिरों में से एक है। आज हम आपको बताएंगे सोमनाथ मंदिर का इतिहास और इससे जुड़ी कुछ दिलचस्प बाते जो आपने कभी नहीं सुनी होगी।

Somnath Mandir – शिव पुराण के अनुसार

जब प्रजापति दक्ष ने अपनी सभी सत्ताइस पुत्रियों का विवाह चन्द्रमा के साथ कर दिया, तो वे बहुत प्रसन्न हुए। पत्नी के रूप में दक्ष कन्याओं को प्राप्त कर चन्द्रमा बहुत शोभित हुए और दक्षकन्याएँ भी अपने स्वामी के रूप में चन्द्रमा को प्राप्त कर सभी कन्याएं भी इस विवाह से प्रसन्न थी। चन्द्रमा की उन सत्ताइस पत्नियों में रोहिणी उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय थी, जिसको वे विशेष आदर तथा प्रेम करते थे। उनका इतना प्रेम अन्य पत्नियों से नहीं था। चन्द्रमा की अपनी तरफ उदासीनता और उपेक्षा का देखकर रोहिणी के अलावा बाकी दक्ष पुत्रियां बहुत दुखी हुई। वे सभी अपने पिता दक्ष की शरण में गयीं और उनसे अपने कष्टों का वर्णन किया।

अपनी पुत्रियों की व्यथा और चन्द्रमा के दुर्व्यवहार को सुनकर दक्ष भी बड़े दुःखी हुए। उन्होंने चन्द्रमा से भेंट की और शान्तिपूर्वक कहा: कलानिधे! तुमने निर्मल व पवित्र कुल में जन्म लिया है, फिर भी तुम अपनी पत्नियों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करते हो। तुम्हारे आश्रय में रहने वाली जितनी भी स्त्रियाँ हैं, उनके प्रति तुम्हारे मन में प्रेम कम और अधिक, ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों है? तुम किसी को अधिक प्यार करते हो और किसी को कम प्यार देते हो, ऐसा क्यों करते हो? अब तक जो व्यवहार किया है, वह ठीक नहीं है, फिर अब आगे ऐसा दुर्व्यवहार तुम्हें नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति आत्मीयजनों के साथ विषमतापूर्ण व्यवहार करता है, उसे नर्क में जाना पड़ता है।
इस प्रकार प्रजापति दक्ष ने अपने दामाद चन्द्रमा को प्रेमपूर्वक समझाया और चन्द्रमा में सुधार हो जाएगा ऐसा सोच, प्रजापति दक्ष वापस लौट आए।

इतना समझाने पर भी चन्द्रमा ने अपने ससुर प्रजापति दक्ष की बात नहीं मानी। रोहिणी के प्रति अतिशय आशक्ति के कारण उन्होंने अपने कर्त्तव्य की अवहेलना की तथा अपनी अन्य पत्नियों का कुछ भी ख्याल नहीं रखा और उन सभी से उदासीन रहे। दुबारा समाचार प्राप्त कर प्रजापति दक्ष बड़े दुःखी हुए। वे पुनः चन्द्रमा के पास आकर उन्हें उत्तम नीति के द्वारा समझने लगे। दक्ष ने चन्द्रमा से न्यायोचित बर्ताव करने की प्रार्थना की।

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बार-बार आग्रह करने पर भी चन्द्रमा ने अवहेलनापूर्वक जब दक्ष की बात नहीं मानी, तब उन्होंने चन्द्रमा को शाप दे दिया। दक्ष ने कहा कि मेरे आग्रह करने पर भी तुमने मेरी अवज्ञा की है, इसलिए तुम्हें क्षयरोग हो जाय।
दक्ष द्वारा शाप देने के साथ ही क्षण भर में चन्द्रमा क्षय रोग से ग्रसित हो गये। उनके क्षीण होते ही सर्वत्र हाहाकार मच गया। सभी देवगण तथा ऋषिगण भी चिंतित हो गये। परेशान चन्द्रमा ने अपनी अस्वस्थता तथा उसके कारणों की सूचना इन्द्र आदि देवताओं तथा ऋषियों को दी। उसके बाद उनकी सहायता के लिए इन्द्र आदि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण ब्रह्माजी की शरण में गये। ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि जो घटना हो गई है, उसे तो भुगतना ही है, क्योंकि दक्ष के निश्चय को पलटा नहीं जा सकता। उसके बाद ब्रह्माजी ने उन देवताओं को एक उत्तम उपाय बताया।

ब्रह्माजी ने कहा कि चन्द्रमा देवताओं के साथ कल्याण कारक शुभ प्रभास क्षेत्र में चले जायें। वहाँ पर विधिपूर्वक शुभ मृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान करते हुए श्रद्धापूर्वक भगवान शिव की आराधना करें। अपने सामने शिवलिंग की स्थापना करके प्रतिदिन कठिन तपस्या करें। इनकी आराधना और तपस्या से जब भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो जाएँगे, तो वे इन्हें क्षय रोग से मुक्त कर देगें। पितामह ब्रह्माजी की आज्ञा को स्वीकार कर देवताओं और ऋषियों के संरक्षण में चन्द्रमा देवमण्डल सहित प्रभास क्षेत्र में पहुँच गये।

वहाँ चन्द्रदेव ने मृत्युंजय भगवान की अर्चना-वन्दना और अनुष्ठान प्रारम्भ किया। वे मृत्युंजय मंत्र का जप तथा भगवान शिव की उपासना में तल्लीन हो गये। ब्रह्मा की ही आज्ञा के अनुसार चन्द्रमा ने छः महीने तक निरन्तर तपस्या की और वृषभ ध्वज का पूजन किया। दस करोड़ मृत्यंजय मंत्र का जप तथा ध्यान करते हुए चन्द्रमा स्थिरचित्त से वहाँ निरन्तर खड़े रहे। उनकी तपस्या से भक्त-वत्सल भगवान शंकर प्रसन्न हो गये। उन्होंने चन्द्रमा से कहा: चन्द्रदेव! तुम्हारा कल्याण हो। तुम जिसके लिए यह कठोर तप कर रहे हो, उस अपनी अभिलाषा को बताओ। मै तुम्हारी इच्छा के अनुसार तुम्हें उत्तम वर प्रदान करूँगा। चन्द्रमा ने प्रार्थना करते हुए विनयपूर्वक कहा: देवेश्वर! आप मेरे सब अपराधों को क्षमा करें और मेरे शरीर के इस क्षयरोग को दूर कर दें।

भगवान शिव ने तपस्या से प्रसन्न होकर चन्द्रदेव से वर मांगने के लिए कहा: इस पर चन्द्रदेव ने वर मांगा कि हे भगवान आप मुझे इस श्राप से मुक्त कर दीजिए और मेरे सारे अपराध क्षमा कर दीजिए। इस श्राप को पूरी से समाप्त करना भगवान शिव के लिए भी सम्भव नहीं था।

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महादेव ने वरदान देकर कम कर दिया कि महीने की 15 तिथियों (दिनों) में तुम्हारे शरीर का थोड़ा – थोड़ा क्षय होगा ( घटेगा ) . यह 15 दिन कृष्ण पक्ष कहलायेगा। बाद की 15 तिथियों में रोज तुम्हारा शरीर थोड़ा – थोड़ा बढ़ते हुए 15 वें दिन पूर्ण हो जाया करेगा। यह पंद्रह दिन शुक्ल पक्ष के रूप में जाने जायेंगे।
चंद्र एवं अन्य देवताओं ने भगवान् शिव से माँ भवानी के साथ वहीँ वास करने की प्रार्थना की, जिसे स्वीकार करके महादेव वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए स्थापित हो गए।

सोम चंद्रमा का ही एक नाम है ,और शिव को चंद्रमा ने अपना नाथ स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी। इसी के चलते ही इस ज्योतिर्लिंग को Somnath कहा जाता है।

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Somnath Mandir-स्कंद पुराण के अनुसार

स्कंद पुराण में उल्लेख किया गया है कि Somnath ज्योतिर्लिंग का नाम हर नए सृष्टि में बदल जाता है। इस क्रम में जब वर्तमान सृष्टि का अंत हो जाएगा और ब्रह्मा जी नई सृष्टि करेंगे तब सोमनाथ का नाम ‘प्राणनाथ’ होगा। प्रलय के बाद जब नई सृष्ट आरंभ होगी तब सोमनाथ प्राणनाथ कहलाएंगे।

स्कंद पुराण के प्रभास खंड में पार्वती के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए महादेव कहते हैं कि अब तक सोमनाथ के आठ नाम हो चुके हैं।
स्कंद पुराण में बताया गया है कि सृष्टि में अब तक अब तक छह ब्रह्मा बदल गए हैं। यह सातवें ब्रह्मा का युग है, इस ब्रह्मा का नाम है ‘शतानंद’। शिव जी कहते हैं कि स युग में मेरा नाम सोमनाथ है। बीते कल्प से पहले जो ब्रह्मा थे उनका नाम विरंचि था। उस समय इस शिवलिंग का नाम मृत्युंजय था।

महादेव का कहना है कि दूसरे कल्प में ब्रह्मा जी पद्मभू नाम से जाने जाते थे, उस समय सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम कालाग्निरुद्र था।

तीसरे ब्रह्मा की सृष्टि स्वयंभू नाम से हुई, उस समय सोमनाथ का नाम अमृतेश हुआ।

सोमनाथ मंदिर के बारे में शिव जी कहते हैं कि चौथे ब्रह्मा का नाम परमेष्ठी हुआ, उन दिनों सोमनाथ अनामय नाम से विख्यात हुए। पांचवें ब्रह्मा सुरज्येष्ठ हुए तब इस ज्योतिर्लिंग का नाम कृत्तिवास था। छठे ब्रह्मा हेमगर्भ कहलाए। इनके युग में सोमनाथ भैरवनाथ कहलाए।

इस सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा विस्तार से महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में वर्णित की गई है। चंद्रमा को सोम भी कहा जाता है। उन्होंने यहां पर शिवशंकर को अपना नाथ-स्वामी मानकर तपस्या की थी। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास

ऐसा माना जाता है कि मूल मंदिर का निर्माण सत्ययुग में चंद्र देवता ने सोने से करवाया था ; त्रेता युग में रावण द्वारा चांदी में; और द्वापर युग में भगवान कृष्ण द्वारा चंदन में।

इस मंदिर को विभिन्न आक्रमणकारियों द्वारा कई बार लूटा और ध्वस्त किया गया – महमूद गजनी (1024), अफजल खान, अला-उद-दीन खिलजी के कमांडर (1296), मुजफ्फर शाह (1375), महमूद बेगड़ा (1451), और बाद में औरंगजेब द्वारा। (1665)

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कई शासकों ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया: उज्जयिनी के श्री विक्रमादित्य (लगभग 2500 साल पहले), वल्लभी राजा (480-767 ईस्वी की अवधि में), अनहिलवाड़ा के भीमदेव (11वीं शताब्दी ईस्वी में), और जूनागढ़ के राजा खंगारा (1351 में) एडी) कई अन्य लोगों के बीच।

इसका लगभग 17 बार पुनर्निर्माण किया गया है! आधुनिक संरचना का निर्माण भारत के पूर्व उप प्रधान मंत्री सरदार वल्लभाई पटेल द्वारा 1947 और 1951 के बीच बलुआ पत्थर से किया गया है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में रोचक तथ्य

स्कंद पुराण के एक अध्याय प्रभास खंड में इस मंदिर का उल्लेख है। इसका उल्लेख ऋग्वेद और भागवत में भी मिलता है।

यह मंदिर ऐसे स्थान पर बनाया गया है कि इसके दक्षिण में अंटार्कटिका तक एक सीधी रेखा में कोई भूमि नहीं है। यह एक स्तंभ पर अंकित है – 7 ई.पू. से। यह इसे समुद्र-संरक्षित स्थल बनाता है।
ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग स्यमंतक मणि या दार्शनिक पत्थर (भगवान कृष्ण से संबंधित) के खोखलेपन में छिपा हुआ था – रसायन गुणों वाला एक पत्थर – जो सोना पैदा करने में सक्षम था। ऐसा माना जाता है कि इस पत्थर में चुंबकीय गुण भी हैं जिसके कारण यह शिवलिंग हवा में लटका रह सकता है!

सोमनाथ मंदिर पर सामान्य प्रश्न (FAQ)

प्रस्तावना
सोमनाथ मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यहाँ हम सोमनाथ मंदिर के बारे में कुछ सामान्य प्रश्नों के उत्तर देंगे।

प्रश्न 1. सोमनाथ मंदिर कहाँ स्थित है? /Where is Somnath Temple?
सोमनाथ मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में, गिर सोमनाथ जिले के वेरावल नगर में स्थित है।

प्रश्न 2. सोमनाथ मंदिर का इतिहास क्या है?/ History of Somnath Temple?
सोमनाथ मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन और समृद्ध है। इसे कई बार पुनर्निर्मित किया गया है। सबसे पहले इसका निर्माण चंद्रमा के देवता सोमराज ने किया था। इसे मुसलमान आक्रमणकारियों द्वारा कई बार नष्ट किया गया, लेकिन हर बार इसे पुनर्निर्मित किया गया।

प्रश्न 3. सोमनाथ मंदिर क्यों महत्वपूर्ण है?
सोमनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसे हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।

प्रश्न 4. मंदिर के दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय क्या है?
सोमनाथ मंदिर के दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच का है। इस समय मौसम सुहावना होता है और यात्रा के लिए अनुकूल होता है।

प्रश्न 5. सोमनाथ मंदिर के आसपास क्या-क्या देखने योग्य स्थान हैं?
सोमनाथ मंदिर के आसपास कई अन्य धार्मिक और पर्यटन स्थल हैं जैसे कि भालका तीर्थ, त्रिवेणी संगम, प्रभास पट्टन संग्रहालय, और गिर राष्ट्रीय उद्यान।

प्रश्न 6. क्या सोमनाथ मंदिर में कोई विशेष उत्सव मनाया जाता है?
हाँ, महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा जैसे महत्वपूर्ण हिन्दू उत्सवों पर यहाँ विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं। इन दिनों मंदिर में बड़ी संख्या में भक्तों का आगमन होता है।

प्रश्न 7. सोमनाथ मंदिर कैसे पहुँचा जा सकता है?/ How to reach Somnath Temple?
सोमनाथ मंदिर वेरावल रेलवे स्टेशन से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नजदीकी हवाई अड्डा दीव है, जो यहाँ से लगभग 90 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा, सड़कों के माध्यम से भी सोमनाथ आसानी से पहुँचा जा सकता है।

निष्कर्ष
सोमनाथ मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। यह मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है और यहाँ की यात्रा एक अद्भुत अनुभव प्रदान करती है।

डिसक्लेमर– इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

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