Vishnu All Avatars/Dasavatar – Chapter I

By Sanatan

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जब जब धर्म की हानि होगी और अधर्म बढ़ेगा तब तब मैं धरती पर अवतार लेकर आता रहूंगा और धर्म की रक्षा और स्थापना करूंगा एवं अधर्म का नाश करूंगा।

मैं यानिकी कृष्ण हर युग में बार-बार अवतार लूंगा जो साधुओं की रक्षा करने के लिए, धरती पर पाप को खत्म करने के लिए, पापियों का संहार करने के लिए और धर्म को स्थापित करने के लिए होगा और में जनकल्याण करूँगा।

भगवद-गीता में लिखा है- महाभारत में अर्जुन को ज्ञान देते हुए कहते हैंः- जैसे मोती सूत के धागे की माला में पिरोए हुए होते हैं, वैसे ही यह सम्पूर्ण जगत मुझमें ही ओत-प्रोत है। यह संसार मुझसे ही उत्पन्न होता है, मुझमें ही स्थित रहता है और मुझमें ही लीन हो जाता है।

मैं ही जल का स्वाद हूँ, सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश हूँ, समस्त वैदिक मन्त्रो में ओंकार हूँ, आकाश में ध्वनि हूँ और मनुष्यों द्वारा किया जाने वाला पुरुषार्थ भी मैं ही हूँ।

मैं पृथ्वी में पवित्र गंध हूँ, अग्नि में उष्मा हूँ, समस्त प्राणियों में वायु रूप में प्राण हूँ और तपस्वियों में तपस्या भी मैं ही हूँ।
मैं ही बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वी मनुष्यों का तेज हूँ। मैं ही इस सम्पूर्ण संसार का महकारण हूँ।

श्रीकृष्ण ने कहा , ‘मैं ही ईश्वर हूँूं, मैं ब्रह्मांडीय व्यवस्था को बहाल करने के लिए अवतार लेता हूँ, सब प्राणी मुझ में हैं और मैं भी सब प्राणियों में हूँ, उन्होंने कहा हैं, ‘जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं विभिन्न प्राणियों की देह के रूप में स्वयं धरा पर उतरता हूँ।

श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान के 22 अवतारों का वर्णन है, वहीं कुछ धर्मशास्त्रों में 24 अवतार भी बताए गए हैं। जिनमें से “दशावतार” (दस अवतार/ Dasavatar) प्रमुख हैं।

गरुड़ पुराण में दशावतार/Dasavatar का वर्णन है। वे हैं- मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार।

भगवान श्री हरी के अवतारो की पौराणिक कथाएं / Story of Lord Vishnu All Avatars :-

Vishnu Avatar List:-

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श्री सनकादि मुनी:- आरंभ में भगवान ब्रह्मा ने लोको की रचना करने कि इच्छा से घोर तपस्या कि तप से प्रसन्न होकर श्री हरी ने तप अर्थ वाले सन नाम से युक्त होकर सनक, सनतान, सनंदन और सनत कुमार नाम के चार मुनियो के रूप में अवतार लिया और उनका उद्देश्य ब्रह्मा को जीवन की सृजना में सहायता करना था।

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नारद:- नारद भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं, और भगवान विष्णु के बड़े भक्त हैं। उनका चित्रण एक ऋषि के रूप में है। जिनके हाथों में खरताल और तानपूरा होते हैं। हिन्दू पौराणिक कथानुसारए नारद जी के पास क्षणों में लोकों के बीच यात्रा करने की इस विशेष क्षमता है। एक कथावाचक और संगीतकारए अक्सर उन्हें देवताओं के दूत और पहले पत्रकार के रूप में समझा जाता है।

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कपिल मुनी:- हिन्दू पौराणिक कथानुसार, कपिल मुनी भगवान विष्णु के पांचवा अवतार हैं। इनके पिता का नाम महर्षि कर्दम व माता का नाम देवहूति था। भगवान कपिल सांख्य दर्षन के प्रवर्तक है। कपिल मुनी भागवत धर्म के प्रमुख बारह आचार्यों में से एक हैं।

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नर और नारायण: सष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए दो रूपो ( नर और नारायण ) में अवतार लिया। उनका जन्म सत्य, न्याय, धार्मिकता और अन्य धर्म के तत्वों की पृथ्वी पर सुनिश्चित करने के लिए हुआ था। ये भाई इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने अपने ध्यान के माध्यम से शिव के पाशुपतास्त्र को अद्भुत तरीके से परास्त किया।

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दत्तात्रेय अवतार:- एक बार देवी लक्ष्मीए पार्वती और सरस्वती अपने पूर्वजों पर अत्यधिक गर्वित हो गईं। भगवान ने उनके अहंकार को नष्ट करने के लिए लीला बनाई। उनके अनुसारए एक दिन नारदजी देवलोक में घूमते हुए पहुँचे और तीन महिलाओं को बताया कि आपकी तपस्या ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूया के सामने कुछ भी नहीं है। तीन देवियों ने इस बात को अपने पतियों को बताया और उनसे कहा कि आपको अनुसूया की तपस्या का परीक्षण करना चाहिए।

तभी त्रिदेव शंकर, विष्णु और ब्रह्मा महर्षि अत्रि के आश्रम में संन्यासी के रूप में पहुँचे। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। तीनों ने अनुसूया देवी से भिक्षा मांगी, लेकिन ये भी कहा कि हमे निर्वस्त्र होकर भिक्षा देनी होगी। शुरू में अनुसूया ने यह सुनकर चौंक गई, लेकिन फिर उन्होंने डरते हुए सोचा कि साधुओं का अपमान न होए तो उन्होंने अपने पति को याद किया और कहा कि अगर मेरा धर्म सच्चा है, तो ये तीन साधु छह महीने के बच्चे हो जाएँ।

जैसे ही उन्होंने यह कहा, त्रिदेव शिशु के रूप में रोने लगे। तब अनुसूया मां बन गई और अपने हाथों से उन्हें दूध पिलाया और पालना करने लगी। जब तीनों देव अपनी जगह पर वापस नहीं आए, तो महिलाएँ व्याकुल हो गईं। तभी वहाँ नारदजी आये और सारी बात बताई। तीन देवियाँ अनुसूया के पास गईं और क्षमा मांगीं। फिर देवी अनुसूया ने त्रिदेव को अपनी पूर्व रूप में स्थापित किया।

प्रसन्न होकर, त्रिदेव ने उसे एक वरदान दिया कि हम तीनों तुम्हारे गर्भ से पुत्रों के रूप में जन्म लेंगें। फिर ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शिव के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।

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यज्ञ अवतार:- भगवान विष्णु के सातवें अवतार का नाम यज्ञ है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान यज्ञ का जन्म स्वायंभुव मन्वन्तर में हुआ था। स्वायंभुव मनु की पत्नी शतरूपा के गर्भ से आकूति का जन्म हुआ, वे रूचि प्रजापति की पत्नी हुई। इन्हीं आकूति के यहां भगवान विष्णु यज्ञ नाम से अवतरित हुए।

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ऋषभदेव:- ऋषभदेव भगवान विष्णु के अवतार है। धर्म ग्रंथों के अनुसार महाराज नाभि की कोई संतान नहीं थी। इस कारण उन्होने अपनी धर्मपत्नी मेरूदेवी के साथ पुत्र की कामना से किया। से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और उन्होने महाराज नाभि को वरदान दिया कि मैं ही तुम्हारे यहां पुत्र रूप में जन्म लूंगा। कुछ समय बादए भगवान विष्णु महाराज के वरदान के रूप में पुत्र के रूप में जन्म लिया, पुत्र के अत्यंत अच्छे.ढंग से निर्मित शरीर, प्रसिद्धि, बल, शक्ति, समृद्धि, प्रसिद्धि ,शक्ति और पराक्रम आदि को देखकर महाराज नभेली ने उन्हें ऋषभ श्रेष्ठ नाम दिया।

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पृथु: पृथु भगवान विष्णु के ही एक अवतार है। धर्म ग्रंथों के अनुसार मनु के वषं में अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानस पुत्रीे सुनीता के साथ हुआ। उनके यहा वेन नामक एक पुत्र हुआ। वह भगवान में विश्वास नहीं करता और स्वयं को पूजन करने के लिए कहता।

तब महर्षि ने मंत्र कुंड से उसका वध कर दिया। फिर महर्षि ने पुत्रहीन राजा वेन की भुजाओं का मंथन किया, जिससे पृथु नाम पुत्र उत्पन्न हुआ। पृथु के दाहिने हाथ में चक्र और चरणें में कमल का चिह्न देखकर महर्षियों ने कहा कि पृथु के रूप में श्रीहरि का एक अंश स्वयं अवतरित हुआ है।

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धन्वंतरि:-धर्म, ग्रंथो के अनुसार जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तो पहले जहरीला विष उसमें से निकला जो भगवान शिव ने पी लिया। इसके बाद, उच्छश्रवा घोड़ा, देवी लक्ष्मी, एरावत हाथी, कल्प वृक्ष, अप्सराएं और कई अन्य मणियां समुद्र मंथन से निकलीं। अंत में, भगवान धन्वंतरि अमृत पात्र के साथ प्रकट हुए। वह आयुर्वेद के देवता भी हैं और उन्हें स्वस्थ सेहत प्राप्त करने के लिए पूजा जाता है। धन्वंतरि को औषधि के भगवान के रूप में भी माना जाता है।

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मोहिनी अवतार:- धर्म ग्रंथो के अनुसार मोहिनी रूप भवान विष्णु की एक अवतार है। जब समुद्र मंथन के दौरान सबसे अंत में धन्वन्तरि अमृत कलष लेकर निकले तो अमृत के लिए दैत्यों और असुरों में भयंकर मार काट मच गई, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया, ताकि सभी को मोहित किया जा सके। मोहिनी ने देवता व असुर कि बात सुनी और कहा कि यह अमृत कलष मुझे दे दीजिए तो मैं बारी-बारी से देवता व असुर को अमृत का पान करा दूंगी, दोनों सहमत हो गए। देवता एक ओर बैठे और राक्षस दूसरी ओर। फिर मोहिनी रूप में भगवान विष्णु, मधुर गाना गाते हुए देवताओं और राक्षसों को अमृत बाँटना शुरू कर दिया। वास्तव में, अमृत को सिर्फ देवताओं ने ही पिया, जबकि राक्षस सोच रहे थे कि वे भी अमृत पी रहे हैं।

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हयग्रीव अवतार:- धर्म ग्रंथो के अनुसार एक बार मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिषाली राक्षस ब्रह्ममाजी से वेदों का हरण कर रसातल में पहुँच गए। तब भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार लिया, इस अवतार में भगवान विष्णु गर्दन और सिर घोड़े के समान थी। उन्होंने मधु और कैतभ नामक राक्षसों का वध कर उनके द्वारा चुराए गए वेदों को प्राप्त कर ब्रह्ममाजी को वापस लौटा दिया।

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महर्षि वेदव्यास:- पुराणों में महर्षि वेदव्यास को भी भगवान विष्णु का ही अंष माना गया हैं। भगवान व्यास नारायण के कलावतार थे। वे महर्षि नराषर के पुत्र रूप में प्रकट हुए थे। उनका जन्म कैवर्तराज की पोष्यपुत्री सत्यवती के गर्भ से यमुना के द्वीप पर हुआ था। उनका एक नाम कृष्णद्वैपायन भी था। इन्होंने ही वेदो का विभाजन किया, इसलिए इन्हें वेदव्यास भी कहा जाता है। इन्होंने ही महाभारत ग्रंथ की रचना की।

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मत्स्यावतार:- राजा सत्यव्रत एक दिन नदी में जलांजलि को स्नान कर रहे थे। अचानक एक छोटी सी मछली उनके अंजलि में आई। जब उन्होने इसे समुद्र में लौटाने का सोचा, तो वह मछली बोली – तुम मुझे समुद्र में मत डालो, वरना बड़ी मछलियाँ मुझे खा जाएंगी। तब राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख दिया। जब मछली बड़ी हो गई, तो राजा ने उसे अपने तालाब में रखा, और फिर उसे देखते ही, मछली और बड़ी हो गई। राजा को समझ में आया कि यह कोई साधारण प्राणी नहीं है। राजा ने मछली से वास्तविक रूप में आने की प्रार्थना की।

राजा की प्रार्थना को सुनकर, भगवान विष्णु प्रकट हुए, और कहा कि यह मेरी मत्स्यावतार है। भगवान ने सत्यव्रत से कहा – सुनो राजा सत्यव्रत! आज से सात दिन बाद एक महाप्रलय होगा। तब मेरी प्रेरणा से तुम्हारे पास एक विशालकाय नाव आएगी। सात संतों के सूक्ष्म शरीर, औषधियाँ, बीज और प्राणियों को लेकर उसमें बैठ जाओ, जब तुम्हारी नाव हिलने लगे, तब मैं तुम्हारे पास मत्स्य के रूप में आऊँगा। उस समय तुम उस नाव को वासुकि नाग के सींग से बांध देना। उस समय, मैं तुमसे प्रश्न पूछकर उत्तर दूंगा, ताकि मेरा जिनका नाम परब्रह्म के नाम से जाना जाता है, उसकी महिमा तुम्हारे हृदय में प्रकट हो। फिर, जब समय आया, मत्स्यपुराण के नाम से प्रसिद्ध राजा सत्यव्रत को मत्स्य देव विष्णु ने दार्शनिकता की शिक्षा दी।

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कच्छप अवतार:- पूराणो के अनूसार भगवान विष्णु के कूर्म (कछुए) का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी। इस अवतार को कच्छप अवतार भी कहा जाता है। एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इंद्र को शाप दियाए जिससे उन्हें मानव स्वरूप में परिणत कर दिया गया। जब इंद्र भगवान विष्णु के पास गएए तो उन्होंने उन्हें समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया। तब इंद्र ने राक्षसों और देवताओं के साथ समुद्र मंथन करने का समझौता किया। समुद्र मंथन के लिए मंदाराचल पर्वत को मथनी और नागराज वासुकी को जाल बांधा गया। देवता और राक्षस अपनी भिन्नताओं को भूलकर मंदाराचल को उखाड़कर समुद्र की ओर ले गएए लेकिन वे उसे दूर नहीं ले जा सके। तब भगवान विष्णु ने मंदाराचल को किनारे पर रखा। देवता और राक्षसों ने मंदाराचल को समुद्र में धकेल दिया और नागराज वासुकी को नेता बनाया।

लेकिन मंदाराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। इसे देखकर भगवान विष्णु ने एक विशाल कूर्म (कछुआ) के रूप में अवतरण लिया और समुद्र में मंदाराचल का आधार बन गए। मंदाराचल बड़े शीघ्रता से भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर आराम से चलने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन पूरा हुआ।

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वराह अवतार:- पुराणो के अनुसार दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब बह्मा जी के नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतो पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए और फिर से स्थापित किया।

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