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Dharmik stories

Dwarka – The Lost City

Dwarka

mukku By mukku Last updated: September 27, 2024 8 Min Read
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Dwarka भारत के सात पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है और इसका धार्मिक महत्व काफी बड़ा है। गुजरात के सौराष्ट्र प्रायद्वीप के पश्चिमी सिरे पर स्थित यह नगरी भगवान कृष्ण की प्राचीन नगरी मानी जाती है। महाभारत के अनुसार, द्वारका वह जगह है जहां भगवान कृष्ण ने अपनी राजधानी स्थापित की थी। यह स्थान सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। द्वारका का प्राचीन इतिहास और समुद्र में डूबने की कहानियां इसे और भी रहस्यमयी और आकर्षक बनाती हैं।

Contents
द्वारका की कहानियाँ एवं पौराणिक कथाएँक्यो पानी में डूबी द्वारका ?पहला कारण गांधारी का श्रापदूसरा कारण ऋषियों का श्रापद्वारका के समुद्री अवशेषों की खोजद्वारका में घूमने और अनुभव करने के लिए कुछ प्रमुख चीजें

द्वारका की कहानियाँ एवं पौराणिक कथाएँ

एक प्रसिद्ध कहानी के अनुसार, भगवान कृष्ण मथुरा को छोड़कर द्वारका आ गए थे क्योंकि मथुरा पर बार-बार जरासंध नामक राजा हमले कर रहा था। जरासंध, कंस (जो भगवान कृष्ण का मामा था) की मौत का बदला लेना चाहता था। इसीलिए भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़कर अपने यादव वंश के साथ द्वारका की ओर प्रस्थान किया।जब भगवान कृष्ण द्वारका पहुंचे, तो उन्होंने भगवान विश्वकर्मा से एक नया शहर बनाने के लिए कहा। भगवान विश्वकर्मा ने बताया कि शहर तभी बन सकता है जब समुद्र देवता उन्हें थोड़ी जमीन देंगे। भगवान कृष्ण ने समुद्र देवता से प्रार्थना की और उन्होंने 12 योजन जमीन दे दी। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा ने केवल 2 दिनों में द्वारका शहर का निर्माण किया। इस शहर को ष्सुवर्ण द्वारकाष् कहा गया क्योंकि यह सोने, पन्ना और अन्य रत्नों से सजाया गया था।माना जाता है कि भगवान कृष्ण का मुख्य निवास बेट द्वारका नामक एक द्वीप पर था। और जब भगवान कृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया, तो पूरी द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई। समुद्र देवता ने अपनी दी हुई जमीन वापस ले ली।

क्यो पानी में डूबी द्वारका ?

पहला कारण गांधारी का श्राप

पौराणिक कहानी के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़कर समुद्र के किनारे एक नई नगरी बसाई जिसे ष्द्वारकाष् कहा गया। ऐसा माना जाता है कि महाभारत के 36 साल बाद यह नगरी समुद्र में डूब गई थी। महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत के बाद, जब युधिष्ठिर का राजतिलक हस्तिनापुर में हो रहा था, श्रीकृष्ण भी वहां मौजूद थे।तभी गांधारी, जो कौरवों की माँ थीं, ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया। उन्होंने कहा कि जैसे उनके कुल का नाश हो गया, वैसे ही श्रीकृष्ण के कुल का भी विनाश होगा और यह सब उनकी आंखों के सामने होगा। माना जाता है कि इस श्राप के कारण ही बाद में द्वारका नगरी समुद्र में समा गई।

दूसरा कारण ऋषियों का श्राप

एक और पौराणिक कहानी के अनुसार, एक बार कुछ ऋषि जैसे महर्षि विश्वामित्र, नारद और कण्व द्वारका आए। तब यादव वंश के कुछ लड़कों ने मजाक में श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री के वेश में उनके सामने पेश किया और कहा कि वह गर्भवती है। उन्होंने ऋषियों से पूछा कि उसके गर्भ में कौन सा बच्चा जन्म लेगा। इस अपमान से गुस्साए ऋषियों ने श्राप दिया कि उसके गर्भ से एक लोहे का मूसल (हथियार) निकलेगा जिससे यादव वंश का नाश हो जाएगा।इसके बाद, यादव लोग आपस में लड़ाई करने लगे और धीरे-धीरे सब मारे गए। सभी यादवों की मृत्यु के बाद, बलराम ने भी शरीर त्याग दिया। एक शिकारी ने श्रीकृष्ण को गलती से हिरण समझकर तीर मार दिया, जिससे श्रीकृष्ण भी देवलोक चले गए।जब पांडवों को द्वारका में हुए विनाश की खबर मिली, तो अर्जुन वहां गए और श्रीकृष्ण के बचे हुए परिवार को इंद्रप्रस्थ ले आए। इसके बाद, पूरी द्वारका नगरी रहस्यमयी तरीके से समुद्र में डूब गई।

द्वारका के समुद्री अवशेषों की खोज

बसे पहले भारतीय वायुसेना के पायलटों ने समुद्र के ऊपर से उड़ते हुए द्वारका के डूबे हुए अवशेषों को देखा था, और 1970 के जामनगर गजेटियर में इसका जिक्र हुआ। इसके बाद इन अवशेषों के बारे में कई दावे और चर्चाएँ शुरू हो गईं। वायुसेना ने जो देखा, उसकी असलियत भारतीय नौसेना ने बाद में साबित की।

कई लोग मानते थे कि द्वारका नगरी केवल एक कल्पना है, लेकिन इस कल्पना को सही साबित किया पुरातत्वविद प्रो. एस.आर. राव ने। उन्होंने 1979-80 में समुद्र के भीतर 560 मीटर लंबी द्वारिका की दीवार खोजी। इसके साथ ही उन्हें वहां प्राचीन बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के थे। इसके अलावा, उन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता के भी कई अवशेष खोजे।

2005 और 2007 में, भारतीय पुरातत्व विभाग और नौसेना के गोताखोरों ने समुद्र में समाई द्वारिका नगरी के अवशेषों की सफलतापूर्वक खोज की। गोताखोरों ने समुद्र की गहराई में कटे-छंटे पत्थर और अन्य नमूने इकट्ठा किए। गुजरात के कच्छ की खाड़ी के पास, नौसेना और पुरातत्व विशेषज्ञों ने मिलकर समुद्र के भीतर व्यापक सर्वेक्षण किया और चूना पत्थर के बड़े-बड़े खंड ढूंढे। ये अवशेष किसी समृद्धशाली नगर और मंदिर के हिस्से थे।

पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों ने इन नमूनों को देश-विदेश की प्रयोगशालाओं में भेजा, ताकि उनकी प्राचीनता का पता लगाया जा सके। इन नमूनों की जांच से पता चला कि ये सिंधु घाटी सभ्यता से मेल नहीं खाते, लेकिन फिर भी ये बहुत प्राचीन थे। 2001 में, जब सरकार ने गुजरात के समुद्री तटों पर प्रदूषण के प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी से सर्वे करवाया, तब समुद्र के तल में एक प्राचीन नगर पाया गया। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह नगर 32,000 साल पुराना था और 9,000 साल से समुद्र में डूबा हुआ है। यह एक हैरान कर देने वाली खोज थी। ऐसा माना जाता है कि हिमयुग खत्म होने के बाद समुद्र का जलस्तर बढ़ने से यह नगर डूब गया होगा।

द्वारका में घूमने और अनुभव करने के लिए कुछ प्रमुख चीजें

  • श्री द्वारकाधीश मंदिर – यहां मंदिर का ध्वज दिन में पांच बार बदला जाता है, जो भारत में किसी अन्य मंदिर में नहीं होता।
  • गोपीनाथ तालाब – यह वह स्थान है जहां भगवान कृष्ण अपनी गोपियों के साथ खेला करते थे।
  • तुलाभारा परंपरा – तुलाभारा एक प्राचीन भारतीय प्रथा है, जिसमें व्यक्ति को तराजू पर तौलकर उतने वजन का अनाज दान किया जाता है।
  • द्वारकाधीश बाजार – यहां से चक्रशिला (एक पहिया जैसे पत्थर) और गोपी चंदन की लकड़ियां जैसी मशहूर स्मारिकाएं खरीद सकते हैं।
  • लाइट हाउस – द्वारका के समुद्र तट पर स्थित यह लाइट हाउस एक प्रमुख स्थल है। इसके पीछे समुद्र की लहरों द्वारा बनी एक प्राकृतिक गुफा भी है।

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

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