ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृ त्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ। ॐ जूं स माम् पालय पालय स: जूं ॐ
Aum Tryambakam yajaamahe
sugandhim pushtivardhanam |
Urvaarukamiva bandhanaan
mrityormuksheeya maamritaat ||
Mahamrityunjay Mantra हिन्दू धर्म में सबसे शक्तिशाली और पूज्य मंत्रों में से एक है। इसे “महा मृत्युंजय मंत्र” या “त्र्यम्बकम् मंत्र” के रूप में भी जाना जाता है, यह एक पवित्र मंत्र है जो भगवान शिव को समर्पित है, परम नाश और मुक्ति की दिव्य शक्ति। मान्यता है कि इस मंत्र के जप से व्यक्ति को लंबी आयु प्राप्त होती है तथा वह निरोगी रहता है।
Mahamrityunjay Mantra की उत्पत्ति / Story
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय ऋषि मृकण्डु ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या की। अपने भक्त की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ऋषि मृकण्डु को इच्छानुसार वर संतान प्राप्त होने का वरदान दिया परंतु भगवान शिव ने ऋषि मृकण्डु को बताया कि यह पुत्र अल्पायु होगा। इसके कुछ समय पश्चात ऋषि मृकण्डु को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र के जन्म के पश्चात ऋषियों ने बताया कि इस संतान की आयु केवल 16 वर्ष ही होगी। यह सुनते ही ऋषि मृकण्डु विषाद से घिर गए।
अपने पति को चिंता से घिरा हुआ देख जब ऋषि मृकण्डु की पत्नी ने उनसे दुःख का कारण पूंछा तब उन्होंने सारा वृतांत बताया। इस पर उनकी पत्नी ने कहा कि यदि शिव जी की कृपा होगी, तो यह विधान भी वे टाल देंगे। ऋषि ने अपने पुत्र का नाम मार्कण्डेय रखा और उन्हें शिव मंत्र भी दिया। मार्कण्डेय सदैव शिव भक्ति में लीन रहा करते थे। समय बीतता गया और मार्कण्डेय बड़े होते गए। जब समय निकट आया तो ऋषि मृकण्डु ने अल्पायु की बात अपने पुत्र मार्कण्डेय को बताई। इसी के साथ ही उन्होंने कहा कि यदि शिवजी चाहेंगें तो इसे टाल देंगें।
तब अपने माता-पिता के दुःख को दूर करने के लिए मार्कण्डेय ने शिव जी से दीर्घायु का वरदान पाने के लिए शिव जी आराधना शुरू कर दी। शिवजी की आराधना के लिए मार्कण्डेय जी ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठ कर इसका अखंड जाप करने लगे।
जब मार्कण्डेय जी की आयु पूर्ण हो गई तब उनके प्राण लेने के लिए यमदूत आये परंतु उस समय मार्कण्डेय जी भगवान शिव की तपस्या में लीन थे। यह देखकर यमदूत वापस यमराज के पास गए और वापस आकर पूरी बात बताई। तब मार्कण्डेय के प्राण लेने के लिए यमराज स्वयं आये। जैसे ही उन्होंने मार्कण्डेय के प्राण लेने के लिए अपना पाश उनपर डाला, तो बालक मार्कण्डेय शिवलिंग से लिपट गए।
ऐसे में पाश गलती से शिवलिंग पर जा गिरा। यमराज की आक्रमकता पर शिव जी अत्यंत क्रोधित हो गए और अपने भक्त की रक्षा हेतु भगवान शिव यमराज के समक्ष प्रकट हो गए, तब यम देव ने विधि के नियम की याद दिलाई लेकिन शिवजी ने मार्कण्डेय को दीर्घायु का वरदान देकर विधान ही बदल दिया।
इस तरह से मार्कण्डेय ने भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते हुए Mahamrityunjay Mantra की रचना की और भगवान शिव ने यमराज से उनके प्राणों की रक्षा की। यही कारण है कि Mahamrityunjay Mantra को मृत्यु टालने वाला मंत्र कहा जाता है।
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ / Mahamrityunjay mantra Arth
त्रयंबकम- त्रि.नेत्रों वाला ;कर्मकारक।
यजामहे- हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं। हमारे श्रद्देय।
सुगंधिम- मीठी महक वाला, सुगंधित।
पुष्टि- एक सुपोषित स्थिति, फलने वाला व्यक्ति। जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम- वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है।
उर्वारुक- ककड़ी।
इवत्र- जैसे, इस तरह।
बंधनात्र- वास्तव में समाप्ति से अधिक लंबी है।
मृत्यु- मृत्यु से मुक्षिया, हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
मात्र न
अमृतात- अमरता, मोक्ष।
Mahamrityunjay Mantra का सरल अनुवाद
इस मंत्र का मतलब है कि हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र के फायदे / Mahamrityunjay mantra Benifits
- इस मंत्र के पाठ से भगवान शिव हमेशा प्रसन्न रहते हैं और मनुष्य को कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है।
- Mahamrityunjay Mantra के जप से रोगों का नाश होता है और मनुष्य निरोगी बनता है।
- इस मंत्र के प्रभाव से मनुष्य का अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है।
- जिस भी व्यक्ति को धन-सम्पत्ति पाने की इच्छा हो, उसे महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करना चाहिए।
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